नई दिल्ली/डेस्क: तेलंगाना में विधानसभा चुनाव से पहले, उत्तर भारत के हिंदीभाषी इलाकों में रेवंत रेड्डी का नाम हर किसी के लिए अज्ञात था। लेकिन चुनावी प्रक्रिया के दौरान, उनका नाम तेलंगाना में उच्चतम स्तर पर उभरने लगा। जब एग्जिट पोल्स पर कई सर्वे एजेंसियों ने कांग्रेस की जीत का संकेत दिया, तो रेवंत रेड्डी का नाम और भी चर्चा का केंद्र बन गया। इससे स्पष्ट होता है कि तेलंगाना में उन्होंने पिछले कुछ सालों में कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण काम किया है जिससे जनता के बीच उनका एक अच्छा प्रभाव बना है। कांग्रेस की जीत के बाद वह राज्य के मुख्यमंत्री बन सकते हैं.
08 साल पहले, रेवंत रेड्डी ने केसीआर (के.चंद्रशेखर राव) को गद्दी से हटाने और उनके परिवार को राजनीति से बाहर करने की एक कसम खाई थी। और इन विधानसभा चुनावों में, उन्होंने इस कसम को भरपूर निभाया है। उनके नेतृत्व में, कांग्रेस ने तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति को महत्वपूर्ण रूप से परास्त किया है।
यह सब कार्य उन्होंने सिर्फ तीन साल में किए हैं। 2020 में, उन्हें मोहम्मद अजहरुद्दीन की जगह राज्य में कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था। छोटे कद के उपहास के बावजूद, उन्होंने दिखा दिया कि तेलंगाना की सियासत में उनका स्थान काफी महत्वपूर्ण है।
रेवंत रेड्डी ने की संघ और एवीबीपी से शुरुआत
वह कृषि से जुड़े एक गैर-राजनीतिक परिवार से आते है। हैदराबाद के एवी कॉलेज से आर्ट्स में ग्रेजुएशन करने के बाद, वहां उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्या परिषद (एबीवीपी) के सक्रिय कार्यकर्ता और नेता के रूप में शुरुआत की थी।
रियल एस्टेट और अन्य व्यवसायों में हाथ आजमाने के बाद, रेवंत रेड्डी ने 2001-2002 के आसपास टीआरएस (अब बीआरएस) के सदस्य के रूप में अपना सियासी करियर शुरू किया। जेल जाने के बाद, जब उन्हें केसीआर और पार्टी से मदद नहीं मिली, तो उन्होंने 2006 में उसे छोड़ दिया। 2007 में, उन्होंने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में एमएलसी बनने का निर्णय लिया। इसके बाद, वह तेलुगु देशम पार्टी में शामिल हो गए।
2009 में पहली बार, रेवंत रेड्डी को कोडंगल निर्वाचन क्षेत्र से टीडीपी का विधायक बनाया गया। उन्होंने अगले चुनाव में भी टीडीपी के विधायक का पद दोहराया। 2018 में, केसीआर की लहर में, उन्होंने पटनम नरेंद्र रेड्डी के खिलाफ लगभग 9,000 वोटों से हार का सामना किया। उन्होंने दो बार विधान परिषद में भी चुनाव जीता। इसके बाद, वर्ष 2019 में, उन्होंने मल्काजगिरी से सांसद का पद भी अपनाया।
कभी केसीआर के खास आदमी रहे रेवंत रेड्डी
2014 में आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद, केसीआर ने तेलंगाना में सरकार बनाई, और उस समय रेवंत रेड्डी उनके खास आदमी बन गए थे। लोग उनके पीछे छाया की तरह रहने लगे, और उनकी निष्ठा और बोलने की कला ने उन्हें तेलंगाना टीडीपी का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया। लेकिन एक साल बाद, वे गंभीर आरोपों में फंस गए।
तब रेवंत रेड्डी जेल गए, और उनकी बेटी की शादी में जमानत पर पहुंचे। 2015 में, एक गुप्त ऑपरेशन के दौरान, उन्हें टीडीपी एमएलसी उम्मीदवार के पक्ष में वोट करने के लिए रिश्वत देते हुए पकड़ा गया। रेवंत को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने गिरफ्तार कर लिया। यह गिरफ्तारी तब हुई जब उनकी एकमात्र बेटी निमिषा की शादी हो रही थी। उन्हें जमानत पर कुछ घंटों के लिए बाहर आने की अनुमति मिली, ताकि वह सगाई और शादी में शामिल हो सकें, लेकिन पार्टी ने इसे दरकिनार कर दिया।
ऐसे हुए कांग्रेस में शामिल
जब वह टीडीपी से कांग्रेस में शामिल हुए, तो उन्होंने मात्र 5 साल के अंदर ही अपनी उम्दा क्षमताओं के कारण खुद को राज्य में पार्टी का अगुवा नेता बना लिया। तीन साल पहले, उन्हें राज्य में कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में नामित किया गया। उनकी उज्ज्वल राजनीति ने पार्टी में एक मजबूत असर डाला।
भारत जोड़ो यात्रा ने रेवंत को राहुल गांधी के करीब ला दिया। उनकी भारी भीड़ जुटाने की क्षमता ने सबको प्रभावित किया। इस यात्रा में उनकी तस्वीरें और गाने उच्च प्रोफ़ाइल पर आए, जिससे पार्टी में उनका प्रभाव मजबूत हुआ।
लेखक: करन शर्मा