24 के लोकसभा चुनाव में कौन है मुसलमानों का हमदर्द? ओवैसी या अजमल?

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नई दिल्ली/डेस्क: भारतीय राजनीति में अक्सर ये सवाल पूछा जाता है कि मुसलमानों का सियासी मसीहा कौन है और देश में मुस्लिम पॉलिटिक्स क्या है? 2024 लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी के खिलाफ 26 विपक्षी दलों ने मिलकर ‘INDIA’ गठबंधन बनाया है. इसके गठन के साथ ही यह सवाल उठे कि मुस्लिम आधारित पार्टियों को जगह नहीं मिली.

विपक्षी गठबंधन में न ही असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM को एंट्री दी गई और न ही बदरुद्दीन अजमल की AIUDF को. ओवैसी ने INDIA पर मुसलमानों की पॉलिटिक्स की अनदेखी का आरोप लगाया. ऐसे में सवाल उठता है कि ओवैसी और अजमल की गैर-मौजूदगी में ‘INDIA’ के पास ऐसे कौन से चेहरे हैं, जो मुस्लिम मतदाताओं को साधने की ताकत रखते हैं?

मुस्लिम मतदाताओं के एक तबके का झुकाव ओवैसी और अजमल की तरफ हुआ है, क्योंकि दोनों ही मुस्लिम दलों का एजेंडा मुस्लिम प्रतिनिधित्व को बढ़ाने और अपनी लीडरशिप को खड़े करने की है. AIMIM के नेता तो दावे के साथ कहते हैं कि देश में असदुद्दीन ओवैसी जैसा मुसलमानों का हमदर्द कोई दूसरा नेता नहीं है.

संसद से लेकर सड़क और सोशल मीडिया तक ओवैसी मुसलमानों के मुद्दों पर बेबाकी तरीके से बात रखते हैं, जो मुस्लिमों का खूब पसंद आता है. मुस्लिम पार्टियों के नेताओं की रैली में मुसलमानों की भीड़ तो खूब उमड़ती है. इनके जज्बाती भाषणों पर तालियां भी खूब बजती हैं, लेकिन वोट देते समय मुसलमान धर्मनिरपेक्ष पार्टियों को ही तरजीह देते हैं.

देश में मुसलमानों ने कभी भी किसी मुस्लिम को अपना नेता नहीं माना. चाहे देश का मामला रहा हो या फिर राज्यों की सियासत. उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली, बिहार, पश्चिम बंगाल की बात हो या फिर फिर देश में राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में मुसलमानों ने सेक्युलर हिंदू नेताओं को ही अपना राजनीतिक मसीहा मानता रहा है.

उन्हें वोट देने से लेकर उनकी बातों पर जिंदाबाद का नारा बुलंद करते रहे हैं. इसीलिए विपक्षी गठबंधन ने ओवैसी-अजमल की जगह अपने नेताओं से मुस्लिम वोटों को साधने की कवायद की है.