नई दिल्ली/डेस्क: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न, देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, प्रदान किया जाएगा। कर्पूरी ठाकुर की व्यक्तिगतता स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, और राजनीतिज्ञ के रूप में उजागर है। उन्होंने बिहार में दो बार मुख्यमंत्री पद का कार्यभार संभाला और अपने समर्पण और नेतृत्व के लिए पहचान बनाई। उन्हें ‘जन-नायक’ कहा जाता था और वे सामाजिक न्याय के प्रति अपने समर्पित कार्यों के लिए प्रसिद्ध थे।
कर्पूरी ठाकुर का जीवन परिचय
कर्पूरी ठाकुर को बिहार की सियासत में सामाजिक न्याय के प्रति उनके समर्पण के लिए माना जाता है। उन्होंने साधारित नाई परिवार में जन्म लिया था और उनका सियासी करियर कांग्रेस विरोधी राजनीति में शुरू हुआ। कहा जाता है कि आपातकाल के दौरान भी इंदिरा गांधी ने उन्हें गिरफ्तार नहीं करवा सकीं।
1970 और 1977 में उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री पद का कार्यभार संभाला। 1970 में उनका पहला कार्यकाल सिर्फ 163 दिन का रहा, लेकिन फिर भी उन्होंने सामाजिक और आर्थिक सुधार के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। 1977 की जनता लहर में उन्होंने दूसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाला, लेकिन उनका यह कार्यकाल भी पूरा नहीं हो सका।
कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में मैट्रिक तक की शिक्षा मुफ्त करने का सुझाव दिया और राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को अनिवार्य बनाया। उन्होंने गरीबों, पिछड़ों और अति पिछड़ों के हक में कई कदम उठाए और बिहार की सियासत में समाजवाद का प्रतीक बन गए।
कर्पूरी ठाकुर के शागिर्द
कर्पूरी ठाकुर के समर्थन में बड़े होकर लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार जैसे प्रमुख राजनीतिक नेता सामने आए हैं। इन नेताओं ने भी उनके सामाजिक न्याय के कार्यों से प्रेरित होकर बिहार की राजनीति में अपनी जगह बनाई है।
कर्पूरी ठाकुर की यात्रा का अंत
कर्पूरी ठाकुर का निधन 1988 में हुआ, लेकिन उनकी प्रेरणा और सिद्धांत आज भी बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उनके कार्यों ने बिहार में समाजवाद की राजनीति को मजबूती प्रदान की है और उन्हें आज भी लोगों की स्मृतियों में एक लोकप्रिय नेता बनाए रखा है।
बिहार में कर्पूरी ठाकुर के नाम पर सामाजिक न्याय और समृद्धि की योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिससे उनकी आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित की जा रही है।
लेखक: करन शर्मा