चांद से वापसी के बाद अंतरिक्ष यात्रियों को क्यों किया जाता है क्वारंटीन?

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चंद्रयान 3 के सफल लॉन्च के बाद भारत बहुत जल्द ही अपने ‘व्योमनॉट’ को चाँद पर रिसर्च करने के लिए भेजेगा। लेकिन क्या आपको पता है कि चांद से वापसी के बाद अंतरिक्ष यात्रियों को क्वारंटीन किया जाता है? ऐसा आखिर क्यों किया जाता है?

देखिए, अंतरिक्ष यात्रियों को क्वारेंटीन में रखना प्राथमिक रूप से एक सुरक्षा उपाय है, ताकि अंतरिक्ष यात्रियों और पृथ्वी को संभावित अंतर-ग्रहीय बहाव (interplanetary drift) से होने वाले किसी भी जैविक संदूषण (biological contamination) से बचाया जा सके।

वायरस फैलने का होता है खतरा

चांद पर रहने के दौरान, अंतरिक्ष यात्रियों का चांद के विभिन्न उपादान, धूल और अन्य पदार्थों से संपर्क हो सकता है जो पृथ्वी पर मौजूद नहीं होते हैं।

हालांकि किसी भी कंटैमिनेशन (contamination) को कम से कम करने के लिए व्यापक प्रयास किए जाते हैं, लेकिन इस बात की संभावना हमेशा बनी रहती है कि कुछ चंद्र सामग्री (lunar material) उनके स्पेससूट या उपकरण से चिपक सकती है।

इसलिए एस्ट्रोनॉट्स को क्वारंटीन किया जाता है, ताकि धरती पर चांद से आया कोई भी वायरस न फैले। हालांकि, चांद पर वायरस मिलने की पॉसिबिलिटी लगभग न के बराबर है, लेकिन फिर भी, सेफ्टी कॉन्सर्नस (Safety Concerns) के चलते एस्ट्रोनॉट्स को क्वारंटीन किया जाता है।

अपोलो मिशन के बाद भी किया गया था क्वारंटीन

अंतरिक्ष यात्रियों को क्वारंटीन में रखकर अध्ययन करने से वैज्ञानिक विश्लेषण किया जा सकता है ताकि उन्हें किसी भी खतरनाक अज्ञात पदार्थ के संपर्क के लिए पूरी तरह से जांचा जा सकें।

ऐतिहासिक रूप से, अपोलो मिशनों के दौरान, अंतरिक्ष यात्रियों को ‘लूनर रिसीविंग लेबोरेटरी’ (Lunar Receiving Laboratory) नामक विशेष संस्थान (Special Unit) में क्वारंटीन किया गया था।

आज, आधुनिक क्वारेंटीन प्रोटोकॉल का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, हालांकि इसकी अवधि और प्रक्रिया यात्रा के प्रकार और क्वारंटीन प्रौद्योगिकी के आधार पर निर्भर करती है।

रिपोर्ट: करन शर्मा