नई दिल्ली/डेस्क: हिमालय की गोद में स्थित नेपाल में एक बार फिर भूकंप के झटकों ने धरती को हिला दिया है। इस भूकंप के परिणामस्वरूप 128 लोगों की मौत हो गई है। नेपाल में यह भूकंप शुक्रवार (3 नवंबर) को रात 11.32 बजे आया, और इसके झटके इतने तेज थे कि इसके झटके भारत के दिल्ली सहित उत्तरी राज्यों में भी महसूस किए गए। इस भूकंप से बचाव के लिए लोगों को अपने घरों से बाहर निकलना पड़ा।
नेपाल में भूकंप के झटकों का आना कोई नई बात नहीं है, क्योंकि इस क्षेत्र में पहले भी ऐसे झटके आते रहे हैं। सबसे ताजा मामला 2015 में हुआ था, जिसमें लगभग 8,000 लोगों की मौत हो गई थी। इसके बावजूद, यह सवाल उठता है कि नेपाल में बार-बार भूकंप के झटके क्यों होते हैं, और धरती के नीचे ऐसा क्या है जो इसे हिलने पर मजबूत कर देता है? चलिए आज इन सवालों के जवाब ढूंढ़ने की कोशिश करते हैं।
बार-बार क्यों भूकंप आता है?
वास्तव में, यह सवाल का जवाब नेपाल की स्थानिक और भूगोलिक स्थिति से जुड़ा हुआ है। नेपाल में केवल 17 प्रतिशत क्षेत्र प्लेन या समतल है, जिसे ‘तराई’ कहा जाता है। बाकी क्षेत्रों में या तो पहाड़ हैं या फिर वनस्पति से भरपूर जंगल। तराई क्षेत्र नेपाल के स्वच्छ और फ़र्टाइल भूमि के रूप में पहचाना जाता है। और नेपाल के उत्तरी सीमा के पास हिमालय की ऊंची पहाड़ियों का समूह है। नेपाल में इस प्रकार की घटनाओं को समझने के लिए भूगर्भशास्त्र यानी जियोलॉजी की थोड़ी सी जानकारी की आवश्यकता होती है।
धरती की ऊपरी परत, जिसे क्रस्ट कहा जाता है, बड़ी टेक्टोनिक प्लेटों से बनी होती है। इन प्लेटों की गतिविधि से धरती में भूकंप और अन्य प्राकृतिक आपदाएं होती रहती हैं। नेपाल भी इन टेक्टोनिक प्लेटों के किनारे पर स्थित है, जैसे कि इंडो-ऑस्ट्रेलियन और यूरेशियन प्लेट। जब ये दोनों प्लेट टक्कर मारते हैं, तो नेपाल में भूकंप के झटके आते हैं।
हर साल, इंडो-ऑस्ट्रेलियन और यूरेशियन प्लेट्स आपस में लगभग 5 सेमी की दर से एक-दूसरे की ओर बढ़ रही हैं, जिससे नेपाल में भूकंप के झटके होते रहते हैं। यह रफ्तार शायद कम लगे, लेकिन इसका प्रभाव बहुत भारी होता है। इन प्लेटों की टक्कर के परिणामस्वरूप, पांच करोड़ साल पहले हिमालय के पहाड़ बने थे। नेपाल में इमारतें इस प्रकार के भूकंप के झटकों को संभालने के लिए पर्याप्त रूप से मजबूत नहीं होती हैं, और इसी कारण जब भूकंप आता है, तो बड़ी संख्या में लोगों को जान गंवानी पड़ती हैं।
लेखक: करन शर्मा