क्यों श्रापित है झारखंड की कुर्सी?

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Image Source: Twitter/@HemantSorenJMM

नई दिल्ली/डेस्क: 2000 में बिहार से अलग होकर नया राज्य बनाए जाने वाले झारखंड की सियासत में बार-बार उठापटक देखने को मिल रही है। राज्य के इस छोटे से क्षेत्र में सियासती खेल में हमेशा ही मुख्यमंत्री के साथ अपशगुन का साया मंडराता रहता है। रघुवरदास ने 2014 से 2019 तक मुख्यमंत्री के रूप में सेवा की, लेकिन इसके बाद भी अपशगुन की बातें बनी रहीं। झारखंड के विभिन्न नेताओं ने कुर्सी पर बैठकर कार्यकाल पूरा करने में समस्याएं उत्पन्न की हैं।

मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अपशगुन का साया झारखंड में बना हुआ है। इसे देखते हुए राज्य के प्रमुख नेता शिबू सोरेन और अर्जुन मुंडा, जो तीन-तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं, कभी भी पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए हैं। हेमंत सोरेन, जो मुख्यमंत्री के रूप में दूसरी बार कार्यभार संभाल रहे हैं, उनके कार्यकाल को भी संकट में देखा जा रहा है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें राज्य के मुख्यमंत्री का पूरा कार्यकाल पूरा करना मुश्किल नजर आ रहा है।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ईडी से सात बार समन मिला है और उन पर गुहारें लगाई गई हैं। इसके बाद उनके कार्यकाल को पूरा करने की संभावना कम नजर आ रही है। हेमंत सोरेन खुद भी ईडी के सामने पेश होने की आशंका कर रहे हैं, और इसके बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी को अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को सौंपने का विचार कर रहे हैं।

विधायक दल की बैठक के बाद, झारखंड में आने वाले 24 घंटों में सियासत में उठापटक होने की संभावना है। इससे स्पष्ट होता है कि क्या मुख्यमंत्री की कुर्सी इस बार भी अपशगुन से मुक्त होगी, या फिर एक और सियासी बयार होगा।

लेखक: करन शर्मा

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