सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के प्रशासनिक बंटवारे पर दुनिया के दो अरबपति आमने-सामने; जियो को झटका!.. स्टारलिंक को बढ़त..

Published

भारत में सैटेलाइट स्पेक्ट्रम (Satellite Spectrum) के प्रशासनिक बंटवारे को लेकर दुनिया के दो अरबपति ( Elon Musk और Mukesh Ambani) आमने-सामने आ चुके हैं. एक (एलन मस्क) उसके वैश्विक प्रतिद्वंद्वी प्रशासनिक बंटवारे का समर्थन कर रहे हैं, तो वहीं अंबानी- जो भारत में रिलायंस जियो चलाते हैं, वह नीलामी प्रक्रिया के लिए तर्क दे रहे हैं. चलिए जानते हैं क्या पूरा मामला?…

बता दें कि सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के प्रशासनिक बंटवारे को लेकर टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) ने सितंबर महिने में ‘सैटेलाइट-आधारित वाणिज्यिक संचार सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम बंटवारे की शर्तें और नियम’ नामक एक परामर्श पत्र जारी किया था, जिसमें सैटेलाइट सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम के प्रशासनिक बंटवारे की विधि पर उद्योगपतियों के विचार मांगे गए थे. जिसके बाद रिलायंस जियो और स्टरलिंक ने अपना-अपना जवाब दिया.

जियो और एलन मस्क ने अपने जवाब में क्या कहा?

रिलायंस जियो (Reliance Jio) ने TRAI और DoT को पत्र लिखकर सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की नीलामी के पक्ष में तर्क दिया है. पत्र के अनुसार, जियो का मानना है कि प्रशासनिक बंटवारा सैटेलाइट और टेरेस्ट्रियल सेवाओं के बीच समान अवसर प्रदान नहीं कर सकता है.

जियो ने अपने जवाब में आगे कहा कि, “हम इस बात से हैरान हैं कि परामर्श पत्र में सैटेलाइट और टेरेस्ट्रियल सेवाओं के बीच समान अवसर सुनिश्चित करने के महत्वपूर्ण मुद्दे को नजरअंदाज कर दिया गया है. यह चूक परामर्श की निष्पक्षता को कमजोर करती है और सरकार के संतुलित प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के इरादे को प्रभावित करती है.”

वहीं, एलन मस्क ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए सोशल मीडिया प्लेटफार्म X पर कहा कि, “यह बंटवारा अभूतपूर्व (अनोखा) होगा, क्योंकि ITU ने लंबे समय से सैटेलाइट स्पेक्ट्रम को साझा स्पेक्ट्रम के रूप में नामित किया है।”

एलन मस्क की पोस्ट के बाद केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने घोषणा की कि भारत उपग्रह संचार (Satellite Communication) के लिए स्पेक्ट्रम का प्रशासनिक आवंटन करेगा, जो रिलायंस जियो के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. जियो सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की नीलामी की प्रक्रिया के पक्ष में था, जबकि सरकार का यह फैसला एलन मस्क की कंपनी स्टारलिंक के लिए फायदेमंद है, जो स्पेक्ट्रम का प्रशासनिक बंटवारा चाहती थी.

क्या होता है सैटेलाइट स्पेक्ट्रम?

हालांकि, इस मामले को अरबपतियों की लड़ाई के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन असलियत यह है कि किसी भी देश के लिए सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की नीलामी करना व्यावहारिक नहीं है. सैटेलाइट स्पेक्ट्रम अंतरराष्ट्रीय प्रकृति का होता है और इसका राष्ट्रीय सीमा से कोई लेना-देना नहीं होता. इसे संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी, अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) द्वारा नियंत्रित किया जाता है.

कैसे होता है सैटेलाइट स्पेक्ट्रम का बंटवारा?

वहीं, इस मामले में केंद्रीय मंत्री सिंधिया का कहना है कि, “दुनिया भर में सैटेलाइट स्पेक्ट्रम का बंटवारा प्रशासनिक तरीके से किया जाता है. भारत भी कुछ नया नहीं कर रहा है. इसके विपरीत, यदि आप इसे नीलाम करते हैं, तो यह दुनिया से अलग होगा. क्योंकि सैटेलाइट स्पेक्ट्रम साझा स्पेक्ट्रम होता है. अगर स्पेक्ट्रम साझा किया जाता है, तो आप इसे व्यक्तिगत रूप से कैसे मूल्य निर्धारण कर सकते हैं?”

दूरसंचार अधिनियम 2023 में सैटेलाइट संचार के लिए स्पेक्ट्रम को प्रशासनिक आवंटन की सूची में जोड़ा गया है. दूरसंचार विभाग (DoT) ने भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) से स्पेक्ट्रम आवंटन की प्रक्रिया तय करने के लिए सुझाव मांगे थे. जिसके लिए रिलायंस और स्टरलिंक के अलावा एयरटेल ने भी अपना जवाब दिया.

एयरटेल का बयान

भारती एंटरप्राइजेज के अध्यक्ष सुनील भारती मित्तल ने कहा कि जो कंपनियां शहरी क्षेत्रों में सैटेलाइट सेवाएं प्रदान करना चाहती हैं, उन्हें भी स्पेक्ट्रम खरीदना चाहिए और उन्हें टेरेस्ट्रियल सेवाओं के समान शर्तों का पालन करना होगा.

हालांकि, मित्तल के बयान को एयरटेल की लंबे समय से चली आ रही स्थिति से उलट माना जा रहा है, क्योंकि एयरटेल पहले प्रशासनिक आवंटन के पक्ष में था. लेकिन एयरटेल ने मंगलवार (15 अक्टूबर) को स्पष्ट किया कि उसके रुख में कोई बदलाव नहीं हुआ है.